दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणं l
शुचि पर्यावर्णम् ll
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायश्चक्रम् l
मनः शोषयत् तनुः पेषयत् भ्रमति सदा वक्रम् l
दुर्दान्तैर्दश्नैरमुना श्यान्नैव जनग्रसनम् l शुचि... ll1ll
अर्थ = इस संसार मे जीना कठिन हो गाय है, केवल एकमात्र प्रकृति हि शरण बची है l
पवित्र पर्यावराण ll
महानगरों के अंदर दिन रात घूमता हुआ यह गाड़ियों का पहिया (लौहे का चक्र) हमारे मन का शोषण करता रहता है और शरीर को पीसता रहता है ।
कहीं ऐसा न हो कि यह अपने भयंकर दाँतों के द्वारा सभी लोगों को कहा न जाए । पवित्र पर्यावरण ।। 1 ।।