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I'm a Student at Banaras Hindu University and Pursuing BA Arts (Hindi Hons.). I'm ready to teach with entertainment. I'm also a theater artist so...
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Maya attended Class 12 Tuition
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Swathi attended Class 12 Tuition
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Lakshman attended Class 12 Tuition
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Hemagowri attended Class 12 Tuition
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Manya attended Class 12 Tuition
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Bala attended Class 12 Tuition
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Jayvardhan attended Class 12 Tuition
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Post a LessonAnswered on 16/06/2020 Learn CBSE/Class 12/Hindi/Antra/Chapter 20 - Mamta Kalia - Dusra Devdas/NCERT Solutions/Exercise 20
Deepika Agrawal
Interested to teach to class 1 to 5 , 6 to 10 , 11&12
'गंगा' भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी है। इसे देवनदी, मंदाकिनी, भगीरथी, विश्नुपगा, देवपगा, देवनदी, इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री है। यह हिमालय के उत्तरी भाग गंगोत्री से निकलकर नारायण पर्वत के पार्श्व से ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, विध्यांचल, वाराणसी, पाटिलीपुत्र, मंदरगिरी, भागलपुर, बंगाल से गुजरती हुई गंगासागर में समाहित हो जाती है।
गंगा का हमारे देश के लिए बहुत अधिक महत्त्व है। गंगा नदी भारत के चार राज्यों में से होकर गुजरती है। ये हैं- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल। भारत के इस मध्यम भाग को 'गंगा का मैदान' कहा जाता है। यह प्रदेश अत्यंत उपजाऊ, संपन्न तथा हरा-भरा है, जिसका श्रेय गंगा को ही है। इन राज्यों में कृषि-उपज से संबंधित तथा कृषि पर आधारित अनेक उद्योग-धंधे भी फैले हुए हैं, जिनसे लाखों लोगों की जीविका तो चलती ही है, राष्ट्रीय आय में वृद्धि भी होती है। पेयजल भी गंगा और उसकी नहरों के माध्यम से प्राप्त होता है।
यदि गंगा न होती तो हमारे देश का एक महत्त्वपूर्ण भाग बंजर तथा रेगिस्तान होता। इसीलिए गंगा उत्तर भारत की सबसे पवित्र व महत्त्वपूर्ण नदी है। गंगा नदी भारतीय संस्कृति का भी अभिन्न अंग है। भारत के प्राचीन ग्रंथों; जैसे- वेद, पुराण, महाभारत इत्यादि में गंगा की पवित्रता का वर्णन है। भारत के अनेक तीर्थ गंगा के किनारे पर ही स्थित हैं।
Answered on 15/06/2020 Learn CBSE/Class 12/Hindi/Antra/Chapter 21 - Hazari Prasad Dwivedi - Kurtiz/NCERT Solutions/Exercise 21
Deepika Agrawal
Interested to teach to class 1 to 5 , 6 to 10 , 11&12
'कुटज' हम सभी को उपदेश देता है कि विकट परिस्थितियों में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमें धीरज रखना चाहिए और विकट परिस्थितियों में अपने परिश्रम और शक्ति से काम लेना चाहिए। यदि हम निरंतर प्रयास करते हैं, तो हम इन विकट परिस्थितियों को अपने आगे झुकने के लिए विवश कर देते हैं। विकट परिस्थितियों से गुजरने वाला व्यक्ति सोने के समान चमक कर निकलता है। जो विकट परिस्थितियों को झेल लेता है फिर उसे कोई गिरा नहीं सकता है।
read lessAnswered on 15/06/2020 Learn CBSE/Class 12/Hindi/Antra/Chapter 21 - Hazari Prasad Dwivedi - Kurtiz/NCERT Solutions/Exercise 21
Deepika Agrawal
Interested to teach to class 1 to 5 , 6 to 10 , 11&12
कुटज के जीवन से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं-
(क) हमें हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए।
(ख) विकट परिस्थितियों का सामना धीरज के साथ करना चाहिए।
(ग) अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए।
(घ) स्वयं पर विश्वास रखो किसी के आगे सहायता के लिए मत झुको।
(ङ) सिर उठाकर जिओ।
(च) मुसीबत से घबराओ मत।
(छ) जो मिले उसे सहर्ष स्वीकार कर लो।
Answered on 15/06/2020 Learn CBSE/Class 12/Hindi/Antra/Chapter 21 - Hazari Prasad Dwivedi - Kurtiz/NCERT Solutions/Exercise 21
Deepika Agrawal
Interested to teach to class 1 to 5 , 6 to 10 , 11&12
लेखक यह प्रश्न उठाकर मानवीय कमज़ोरियों पर प्रहार करता है। लेखक के अनुसार कुटज का वृक्ष जीता ही नहीं बल्कि यह सिद्ध कर देता है कि मनुष्य में यदि जीने की ललक है, तो वह किसी भी प्रकार की परिस्थितियों से सरलतापूर्वक निकल सकता है। इस प्रकार जीने में वह अपने आत्मसम्मान तथा गौरव दोनों की रक्षा करता है। किसी से सहायता नहीं लेता बल्कि साहसपूर्वक जीता है। लेखक केवल जीने से यह प्रश्न उठाता है कि कुटज का स्वभाव ऐसा नहीं है। वह जीने के लिए नहीं जी रहा है। इसके लिए उसमें दृढ़ विश्वास है।
यह प्रश्न उन मानवों को लक्ष्य करके बनाया गया है, जो जीवन की थोड़ी-सी कठिनाइयों के आगे घुटने टेक देते हैं। उनके पास जीने की वजह होती ही नहीं है, बस जीने के लिए जीते हैं। ऐसे लोगों में साहस, जीने की ललक की कमी होती है। ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
Answered on 15/06/2020 Learn CBSE/Class 12/Hindi/Antra/Chapter 21 - Hazari Prasad Dwivedi - Kurtiz/NCERT Solutions/Exercise 21
Deepika Agrawal
Interested to teach to class 1 to 5 , 6 to 10 , 11&12
स्वार्थ हमें गलत मार्गों पर ले जाता है। इस स्वार्थ के कारण ही मनुष्य ने गंगनचुम्बी इमारतें खड़ी की हैं, सागर में बड़े-बड़े पुल बनाए हैं, सागर में चलने वाले जहाज़ बनाए, हवा में उड़ने वाला विमान बनाया है। हमारे स्वार्थों की कोई सीमा नहीं है। जिजीविषा के कारण ही हम जीने के लिए प्रेरित होते हैं। लेकिन स्वार्थ और जिजीविषा ही हैं, जो हमें गलत मार्ग में ही ले जाते हैं। इन दोनों के कारण ही हम स्वयं को महत्व देते हैं। हम भूल जाते हैं कि हम क्या कर रहे हैं। लेखक इन दोनों से अलग शक्ति को स्वीकार करता है। उसके अनुसार सर्व वह शक्ति है, जो सबसे बड़ी है। जब मनुष्य इस सर्व शक्ति को स्वीकार करता है, तो वह मानव जाति ही नहीं बल्कि इस पृथ्वी में विद्यमान सभी जातियों का कल्याण करता है। कल्याण की भावना उसे महान बनाती है। यह ऐसी प्रचंडता लिए हुए है कि जो मनुष्य को मज़बूत और निस्वार्थ बना देती है। उसमें अहंकार, लोभ-लालच, स्वार्थ, क्रोध इत्यादि भावनाओं का नाश हो जाता है। जो उभरकर आता है, वह महान कहलाता है। इतिहास में इसके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। बुद्ध, गुरूनानक, अशोक, महात्मा गांधी इत्यादि।
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