वाच्य : वाच्य क्रिया के उस रुप को कहते हैं जिससे पता चलता है कि क्रिया के विधान का विषय कर्ता है, कर्म है, अथवा भाव है।
वाच्य के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं ।
1) कर्तृ वाच्य - कर्तृ वाच्य क्रिया के उस रुप को कहते हैं जिससे पता चलता है कि क्रिया का सीधा फल कर्ता (उद्देश्य) पर पडता है। जैसे - राम रोटी खाता है
2) कर्म वाच्य - कर्म वाच्य क्रिया के उस रुप को कहते हैं जिससे पता चलता है कि वाक्य का उद्देश्य क्रिया का कर्म है। जैसे- पत्र भेजा गया।
3) भाव वाच्य - क्रिया के उस रुप को, जिससे यह पता चलता है कि वाक्य का उद्देश्य न तो कर्ता है, न कर्म है, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान है, उसे भाव वाच्य कहते हैं। जैसे - अब चला जाए।