संस्कृत में तीन वाच्य होते हैं- कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य।
- कर्तृवाच्य में कर्तापद प्रथमा विभक्ति का होता है।= छात्रः श्लोकं पठति- यहाँ छात्रः कर्ता है और प्रथमा विभक्ति में है।
- कर्तृवाच्य में कर्ता मुख्य होता है
- भाववाच्य में क्रिया की मुख्यता होती है
- अकर्मक धातु में कर्म नहीं होने के कारण क्रिया की प्रधानता होने से भाववाच्य के प्रयोग सिद्ध होते हैं।
क्र | कर्तृवाच्य | भाववाच्य |
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1. | भवान् तिष्ठतु | भवता स्थीयताम् |
2. | भवती नृत्यतु | भवत्या नृत्यताम् |
3. | त्वं वर्धस्व | त्वया वर्ध्यताम् |
4. | भवन्तः न सिद्यन्ताम् | भवद्भिः न खिद्यताम् |
5. | भवत्यः उत्तिष्ठन्तु | भवतीभिः उत्थीयताम् |
6. | यूयं संचरत | युष्माभिः संचर्यताम् |
7. | भवन्तौ रुदिताम् | भवद्भयां रुद्यताम् |
8. | भवत्यौ हसताम् | भवतीभ्यां हस्यताम् |
9. | विमानम् उड्डयताम् | विमानेन उड्डीयताम् |
10 | सर्वे उपविशन्तु | सर्वेः उपविश्यताम् |